जानवरों को खुरपका-मुंहपका, गलघोंटू, लंगडा बुखार और संक्रामक गर्भपात (ब्रूसेल्लोसिस) जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिए आवश्यक है कि पशुओं को नियमित रूप से टीके लगवाये जायें।
 
इन बीमारियों के कारण किसानों को दूधारू पशुओं की उत्पादन क्षमता घटने से बहुत अधिक आर्थिक हानि होती है। उनमें से कुछ बीमारियां तो अत्यधिक घातक है सौभाग्यवश, उसमें से अधिकांश बीमारियों की रोकथाम के लिए हमारे देश में टीका उपलब्ध है, जिन्हें यदि समय पर पशुओं को लगाया जाए तो उन बीमारियों को आसानी से रोका जा सकता है।
 
टीकाकरण के समय ध्यान देने योग्य बाते
 
• टीके को प्रशीतन (Refrigeration) में तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि उसे पशु में लगा नहीं दिया जाता।
 
• टीकाकरण के समय पशु का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
 
दवा निर्माता के द्वारा दिए गए रूट व मात्रा निर्देश का सख्ती से पालन करें।
 
रोगों के सही तौर पर नियंत्रण के लीए टीकाकरण कम से कम 80% पशुओं में होना चाहिए।
 
टीकाकरण के 2-3 सप्ताह पहले पशुओं को कृमिनाशक (Deworming) दवा खिलाना लाभदायक होता है। इससे उनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो जाती है।
 
बीमारी होने की संभावना के कम से कम एक महीने पहले टीकाकरण करना चाहिए।
 
गर्भावस्था के अंतिम माह में टीका न लगवाये, क्योंकि टीका लगाने के लिये पशु को नियत्रित करते समय उसे या उसके बच्चे को नुकसान पहुँच सकता है।

टीकाकरण क्यो असफल हो जाता है?

टीका बनने से लेकर टीकाकरण तक Refrigeration या Cold Chain कायम रखने में लापरवाही।
 
कमजोर और कुपोषित पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अभाव।
 
कम क्षमतावान या अप्रभावी टीका।